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अश्वे॑व चि॒त्रारु॑षी मा॒ता गवा॑मृ॒ताव॑री। सखा॑भूद॒श्विनो॑रु॒षाः ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aśveva citrāruṣī mātā gavām ṛtāvarī | sakhābhūd aśvinor uṣāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अश्वा॑ऽइव। चि॒त्रा। अरु॑षी। मा॒ता। गवा॑म्। ऋ॒तऽव॑री। सखा॑। अ॒भू॒त्। अ॒श्विनोः॑। उ॒षाः ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:52» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:3» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (चित्रा) अद्भुत गुण, कर्म और स्वभावयुक्त (अरुषी) ईषत् लाल वर्ण (ऋतावरी) बहुत सत्य का प्रकाश करानेवाली (उषाः) प्रातर्वेला (अश्वेव) घोड़ी के सदृश वर्त्तमान (अश्विनोः) सूर्य और चन्द्रमा की (सखा) मित्र (अभूत्) हुई वह (गवाम्) किरणों की (माता) माता के सदृश पालन करनेवाली जाननी चाहिये ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जो माता और मित्र के सदृश वर्त्तमान प्रातर्वेला है, वह युक्ति से सब पुरुषों से सेवन करने योग्य है ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! या चित्राऽरुष्यृतावरी उषा अश्वेवाश्विनोः सखाऽभूत् सा गवां मातेव पालिका वेद्या ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्वेव) अश्वावद्वर्त्तमाना (चित्रा) अद्भुतगुणकर्म्मस्वभावा (अरुषी) आरक्ता (माता) जननी (गवाम्) किरणानाम् (ऋतावरी) बहुसत्यप्रकाशिका (सखा) (अभूत्) (अश्विनोः) सूर्य्याचन्द्रमसोः (उषाः) ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! या मातृवत्सखिवद्वर्त्तमानोषा वर्त्तते सा युक्त्या सर्वैः सेवनीया ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जी उषा माता व मित्र याप्रमाणे असते, तिचे सर्वांनी युक्तीने सेवन करावे. ॥ २ ॥